कथित ‘उपवास’ रखने से बचिए !
सावन भर मुर्गी-मछली या लहसून-प्याज नहीं खाये, किन्तु जैसे ही सावन पूर्णिमा खत्म हुई कि अगले दिन लोग इनसब चीजों पर ऐसे टूट पड़ते हैं, जैसे- घाव को देखकर मक्खी व एक माह तक इन सब चीजों को किसी तरह बर्दाश्त किए हुए थे ! हद हो गई, भाई ! यह कौन-सी आस्तिकता है ? कौन-सी धार्मिकता है ?
हर दिन गिनते थे, कि अब सावन 10 दिन बचा है, 6 दिन बचा है, 2 दिन बचा है । दो दिन बाद धुक्कड़ मांस-मछली खाएंगे, क्यों? आजकल फ़ैशनेबल ‘उपवास’ हो गया है ! पहले यह एक कथित उच्च जातिवाली उपवास करती थी, अब तो धनी बैकवर्ड और एससी महिलाएँ भी नहीं, पुरुष भी करती हैं।
प्राचीन उपवास में उपवासवाले दिन से एक दिन पहले ‘अरवा’ यानी बिना नमक के ‘अरवा’ भोजन ही किये जाते थे, फिर उपवासवाले दिन ‘सूर्यास्त’ तक जल तक ग्रहण किए बिना उपवास रहते थे यानी निर्जला, फिर उपवास फलाहार से तोड़ते थे !
अब डिजिटल उपवास हो गया है… कई तो घर में काम के डर से ‘मंगलवार’ और ‘गुरुवार’ को उपवास रहते हैं…. यह विचित्र उपवास है…. सिर्फ़ नमक और मांसाहार नहीं करेगी, किन्तु दिनभर मखाना खाएगी, मूँगफली खाएगी, काजू खाएगी, सेब खाएगी, केले खाएगी और मौका मिला तो रसगुल्ला भी खा जाएगी । पानी तो दिनभर लेंगी ही लेंगी, फिर निर्जला कहाँ रही ! ….यानी चित्त भी उनकी, पट भी ! ऐसे ‘मनमानी नियम’ इन डिजिटल उपवासव्रतियों के पास होते हैं ! यह छद्म उपवास है, कथित उपवास है, ऐसे उपवास रखने से बचिए ! यह तो मुँह में राम, बगल में छुरी जैसी है !