कत्ल श्रृद्धा का हुआ तो मर गया संसार भी
हैं निगाहें बंद लेकिन दिख रहा इज़हार भी।
ना नुकर सी है मगर वो कर रहे इकरार भी।।(१)
इश्क मर्यादित रहे नित सोच सबकी है यही,
कर रहे इजहार लेकिन अब सरे बाजार भी।(२)
लोग नश्तर को लिए हैं हाथ में अब घूमते,
दर्द अब किसको दिखाएं झूठ है व्यवहार भी।(३)
इश्क में पाकीज़गी है आज तक हमने सुना
कत्ल श्रृद्धा का हुआ तो मर गया संसार भी।(४)
अब मुहब्बत का भरोसा है नहीं तिल भर यहां
है यही बस ये हकीकत हो रहा दीदार भी।(५)
जुर्म जो अब कर रहे हैं इश्क के ही नाम पर
अब उन्हें फांसी चढा दो है यही दरकार भी।(६)
चुभ रही है अब अटल को हर फरेबी बात ये
है दिखावट का जमाना झूठ है आचार भी।(७)