कतरा कतरा लहू का कहता प्रिय
कतरा कतरा लहू का कहता प्रिय
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कतरा कतरा लहू का कहता प्रिय,
तेरे बिना रहना न गवारा प्रिय।
रग रग में समाए हो तुम इस कदर,
खुश्बू समाई हो, फूलों में प्रिय।
साज बजते नहीं कभी बिन राग के,
गीत पूरा ना हो सुर, लय बिन प्रिय।
चाँद , तारों बिन चाँदनी रात नहीं,
तम में जीवन सदा खो जाता प्रिय।
रोशनी होती कभी न आफताब के,
चाँदनी रात न कभी महताब प्रिय।
महफिल जाम बिना हों सूनी सूनी,
जाम बिन शाम रंग न जमाती प्रिय।
गुलशन गुल बिन कहीं महकते नहीं,
कागजी फूल से महक न आए प्रिय।
मनसीरत तन्हाई में तन्हां अकेला है,
सावन के झूले तुम बिन नीरस प्रिय।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)