कठपुतली की क्या औकात
मिट्टी सुतली उसकी जात,
कठपुतली की क्या औकात।
पल दो पल भर रहती गात,
कठपुतली की क्या औकात।
मालिक डोर घुमाए जैसे,
पुतली नाच दिखाए वैसे।
पराधीन किसी और हाथ में
अपने पर इतराये कैसे।
हँसना रोना सब डोरी में,
उसमें कोई नहीं जज्बात।
कठपुतली की क्या औकात।
कुछ कठपुतली करें नादानी,
खुद को खुद का कहती हैं।
उनको कौन नचा पायेगा,
मनमौजी बन रहती हैं।
पर मालिक जब डोर खीचता,
तब अनुभव हो असली जात।
कठपुतली की क्या औकात।
जो कठपुतली जानती है ये,
कपड़ा काठ का है व्यक्तिव।
रजनी भर की वो रौनक है,
प्रातः न होगा कोई अस्तित्व।
मिट्टी मिट्टी में मिल जाये,
कल नहीं होगी उसकी बात।
कठपुतली की क्या औकात।
जग में हम सब हैं कठपुतली,
वह प्रभु सबका मालिक है।
जैसा चाहे डोर घुमाए,
जड़ चेतन का खालिक है।
जैसे राखे शुकर मनाओ,
सन्त वचन हैं गुनिये तात।
कठपुतली की क्या औकात।
सतीश सृजन, लखनऊ.