कइसे मन बिसराई
सनेहिया कइसे मन बिसराई
हाथ छोड़ा के गइनीं कहवाँ, रोवत बा लरिकाई
जब जब सुधिया में आवेनीं, अँखिया भरि भरि जाला
कहवाँ जाईं कइसे खोजीं, कुछऊ नाहिं बुझाला
कवने नगरिया गइनीं जहवाँ जा के केहुए न आई
सनेहिया कइसे मन बिसराई
बाँहिं पकड़ि के राहि देखवनीं, जब जब राहि भुलाइल
रउए आ के बाति सम्हरनीं, जब जब मन घबड़ाइल
के गलती पर डाँटी मारी, के आ के समुझाई
सनेहिया कइसे मन बिसराई
रउआ गइला पर हम बुझनीं बाप के मतलब का ह
बाप बिना लइकन के जिनिगी, कवनो जिनिगी ना ह
एह दुनिया में बाबूजी अस के ‘असीम’ दुलराई
सनेहिया कइसे मन बिसराई
© शैलेन्द्र ‘असीम’