औ’र ज़ियादा हमें याद आते रहे
जितना बीते दिनों को भुलाते रहे
औ’र ज़ियादा हमें याद आते रहे
तीरगी दिल में जो थी मिटाते रहे
तेरी यादों में हर पल नहाते रहे
सामने सबके बोले हमें कुछ नहीं
धीमे-धीमे मगर बुदबुदाते रहे
मेरी किस्मत का तारा कहीं खो गया
और तारे सभी जगमगाते रहे
होंठ ख़ामोश थे आह निकली नहीं
ज़ख़्म सीने में ऊधम मचाते रहे
पंछियों न जो देखी तबाही मेरी
मातमी धुन में वो चहचहाते रहे
जिसने सर को झुकाया वो जीते सदा
जो अकड़कर चले मात खाते रहे
आँधियों में लचककर झुके जो शजर
बाद में वो सदा लहलहाते रहे
पत्थरों ने वही गीत गाया अभी
आइने भी जिसे गुनगुनाते रहे
शौक़ जिनका रहा ख़्वाब को तोड़ना
ख्व़ाब ‘आनन्द’ के वो सजाते रहे
डॉ आनन्द किशोर