Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Dec 2021 · 4 min read

*….. और मैं पिताजी को खुश देखने के लिए सुंदर लाल इंटर कॉलेज का प्रबंधक बन गया*

अतीत की यादें
???????
परम पूजनीय श्री रामप्रकाश सर्राफ ( 9 अक्टूबर 1925 – 26 दिसंबर 2006 )
??????????
….. और मैं पिताजी को खुश देखने के लिए सुंदर लाल इंटर कॉलेज का प्रबंधक बन गया
????????
पिताजी चाहते थे कि मैं सुंदर लाल इंटर कॉलेज का प्रबंधक बन जाऊँ, लेकिन मैं टालता रहता था । जीवन के अंतिम तीन- चार वर्षों में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। कमजोरी बढ़ती जा रही थी । आखिरी बार वह दीपावली 2006 के अवसर पर घर से बाहर निकले थे । 26 दिसंबर 2006 को उनकी मृत्यु हो गई । शारीरिक कमजोरी के कारण वह आम तौर पर घर पर ही रहते थे। कुल मिलाकर तो उनकी गतिविधियाँ सामान्य रुप से चल रही थीं, परंतु शारीरिक कमजोरी अपनी जगह बढ़ती जा रही थी।
मेरी टालामटोली के बीच ही एक दिन 2004 में पिताजी ने मुझसे कहा कि वह विद्यालय को सरकार को सौंपना चाहते हैं । 50 साल हो गए। अच्छी प्रकार से विद्यालय चल गया ।अब सरकार को सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से निवृत्त हो जाएँगे । पिताजी के यह विचार मेरी इच्छा के अनुरूप थे । मैं भी इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था । मैंने उनकी राय पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की । कागज और कलम लाया और जैसा-जैसा पिताजी कहते गए ,मैं पत्र लिखता गया । बाद में उन्होंने उसे पढ़ा ,अपने हस्ताक्षर किए और फिर वह पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा जिला विद्यालय निरीक्षक को प्रेषित कर दिया गया । उसकी एक प्रति प्रधानाचार्य को भेजी गई थी । पत्र में इस बात का आग्रह था कि विद्यालय को सरकार अपने हाथ में ले ले। जब पत्र सार्वजनिक हुआ तब अवांछनीय तत्व सक्रिय हो रहे हैं ,ऐसी सूचनाएँ मिलने लगीं। सौभाग्य से जिला विद्यालय निरीक्षक विद्यालय की शुभचिंतक थीं तथा पिताजी के सच्चरित्र से प्रभावित थीं। उन्होंने बजाय इसके कि चिट्ठी पर कदम उठाकर आगे की कार्यवाही शुरू करतीं, यह किया कि पिताजी को इस आशय की एक चिट्ठी लिखी कि आपका पत्र अधूरा है तथा कार्यवाही संपूर्ण रुप से प्रेषित नहीं की गई है ,अतः मान्य नहीं है । तब तक पिताजी भी समझ चुके थे कि विद्यालय सरकार को सौंपने जैसी कोई व्यवस्था सरकारी-तंत्र में उपस्थित नहीं है। जिला विद्यालय निरीक्षक के पत्र से स्थिति काबू में आई तथा सब कुछ पहले जैसा सामान्य रूप से चलने लगा।
विद्यालय चलाना पिताजी के लिए इतना ही सरल था जैसे किसी मछली के लिए जल में तैरना होता है । लेकिन फिर भी कुछ जटिलताएँ तो रहती थीं। मेरे द्वारा टालने से बातें और भी खराब हो रही थीं, जिन्हें मैं समझ नहीं पा रहा था । पिताजी कई बार मुझसे कह चुके थे ।
आखिर एक दिन उन्होंने मुझसे कहा “अब तुम प्रबंधक बन ही जाओ । मुझसे अब दस्तखत भी बहुत मुश्किल से हो रहे हैं ।”उनके कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि मैं भीतर से भीग गया और मेरी समझ में आ गया कि मामला बहुत गंभीर है तथा अगर इस बार भी मैंने विषय को टालने की कोशिश की या प्रबंधक बनने से मना किया तो पिताजी का कष्ट बहुत बढ़ जाएगा तथा वह एक बड़े बोझ से ग्रस्त रहेंगे । अतः उन को खुश करने के लिए मैंने दिखावटी उत्साह में भरकर उनसे कहा कि” हां हां ! मैं प्रबंधक बन जाता हूँ। आप चिंता न करें ।” मेरी यह बात सुनकर उन्हें बहुत खुशी हुई और मैंने महसूस किया कि वह अपने आप को काफी हल्का महसूस करने लगे थे। यही तो मैं चाहता था । मेरी तरकीब काम कर गई और उसके बाद पिताजी ने मुझे छोटे बच्चे की तरह बहलाते हुए कहा “प्रबंधक बनने में कोई खास काम नहीं करना पड़ता । बस कभी-कभी कुछ कागजों पर दस्तखत करने होते हैं ।” दरअसल उन्हें डर था कि कहीं मैं फिर टालमटोल न करने लगूँ। मैं उनकी हाँ में हाँ मिलाता रहा । मेरा उद्देश्य उन्हें केवल प्रसन्न देखना था। इस तरह मैं प्रबंधक बन गया ।
??????????
दिनेश जी का मंत्र:- 26 दिसंबर 2006 को मृत्यु से पहले के दस-बारह दिन पिताजी बिस्तर पर रहे और गंभीर अवस्था में उनका बरेली में राम मूर्ति मेडिकल कॉलेज में उपचार चला । उन्हें फालिस पड़ा था। डॉक्टरों ने चार-पाँच दिन पहले उनके बारे में यह बता दिया था कि यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाएंगे । कई बार उन्हें वेन्टीलेटर पर रखना पड़ा और डॉक्टरों की राय भी यही थी कि अब वेन्टीलेटर पर बार-बार रखने से भी कोई फायदा नहीं है ।
पिताजी एक स्वस्थ तथा आत्मनिर्भर जीवन जीने को पसंद करते थे। वह नहीं चाहते थे कि उन्हें बिस्तर पर जीवन का कोई क्षण गुजारना पड़े। ऐसी स्थिति के लिए उन्हें दीनानाथ दिनेश जी ने एक मंत्र बता रखा था। वह मंत्र उन्होंने अपने हाथ से लिख कर मुझे दे रखा था और कह दिया था कि जब मेरी हालत कभी ऐसी हो कि मृत्यु ही मेरा एकमात्र इलाज रह जाए तथा मेरे ठीक होने की कोई संभावना न हो ,तब तुम इस मंत्र को पढ़ लेना तथा इस मंत्र में ऐसी शक्ति है कि इसके बाद व्यक्ति के प्राण शांति पूर्वक निकल जाएंगे । वह मंत्र मैंने न तो किसी किताब में कहीं देखा ,न किसी को कभी पढ़ते हुए देखा था। मुझे इस बात का अनुमान नहीं था कि उस मंत्र का उपयोग करने की कभी आवश्यकता पड़ेगी लेकिन जब पिताजी फिर वेन्टीलेटर पर गए और लंबा समय बीतने लगा तब अचानक मुझे दिनेश जी का बताया हुआ वह मंत्र याद आया । उसका उपयोग किया जाए ,इसके बारे में पिताजी की सीख भी याद आई और मैंने डरते-डरते काँपते होठों से मन ही मन उस मंत्र का पाठ कर लिया । अगले दिन सुबह पिताजी का देहांत हो गया ।
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
309 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
नवरात्रि-गीत /
नवरात्रि-गीत /
ईश्वर दयाल गोस्वामी
2878.*पूर्णिका*
2878.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
--बेजुबान का दर्द --
--बेजुबान का दर्द --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
#आलिंगनदिवस
#आलिंगनदिवस
सत्य कुमार प्रेमी
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
प्रेमदास वसु सुरेखा
हाइकु- शरद पूर्णिमा
हाइकु- शरद पूर्णिमा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
एक मीठा सा एहसास
एक मीठा सा एहसास
हिमांशु Kulshrestha
तुम क्या हो .....
तुम क्या हो ....." एक राजा "
Rohit yadav
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Rekha Drolia
मेला एक आस दिलों🫀का🏇👭
मेला एक आस दिलों🫀का🏇👭
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
पूछो हर किसी सेआजकल  जिंदगी का सफर
पूछो हर किसी सेआजकल जिंदगी का सफर
पूर्वार्थ
कोई फैसला खुद के लिए, खुद से तो करना होगा,
कोई फैसला खुद के लिए, खुद से तो करना होगा,
Anand Kumar
दो सहोदर
दो सहोदर
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
"इतिहास गवाह है"
Dr. Kishan tandon kranti
*मंजिल मिलेगी तुम अगर, अविराम चलना ठान लो 【मुक्तक】*
*मंजिल मिलेगी तुम अगर, अविराम चलना ठान लो 【मुक्तक】*
Ravi Prakash
अब की बार पत्थर का बनाना ए खुदा
अब की बार पत्थर का बनाना ए खुदा
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
मेरा गुरूर है पिता
मेरा गुरूर है पिता
VINOD CHAUHAN
धरती मेरी स्वर्ग
धरती मेरी स्वर्ग
Sandeep Pande
बहुत कुछ था कहने को भीतर मेरे
बहुत कुछ था कहने को भीतर मेरे
श्याम सिंह बिष्ट
■ शायद...?
■ शायद...?
*Author प्रणय प्रभात*
When you realize that you are the only one who can lift your
When you realize that you are the only one who can lift your
Manisha Manjari
"जून की शीतलता"
Dr Meenu Poonia
अभिव्यक्ति के प्रकार - भाग 03 Desert Fellow Rakesh Yadav
अभिव्यक्ति के प्रकार - भाग 03 Desert Fellow Rakesh Yadav
Desert fellow Rakesh
निर्णय लेने में
निर्णय लेने में
Dr fauzia Naseem shad
🌹मेरे जज़्बात, मेरे अल्फ़ाज़🌹
🌹मेरे जज़्बात, मेरे अल्फ़ाज़🌹
Dr Shweta sood
कुछ बातें ज़रूरी हैं
कुछ बातें ज़रूरी हैं
Mamta Singh Devaa
विधवा
विधवा
Acharya Rama Nand Mandal
गुलामी के कारण
गुलामी के कारण
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
आराम का हराम होना जरूरी है
आराम का हराम होना जरूरी है
हरवंश हृदय
सत्य प्रेम से पाएंगे
सत्य प्रेम से पाएंगे
महेश चन्द्र त्रिपाठी
Loading...