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24 May 2023 · 1 min read

ओ चाँद गगन के….

ओ चाँद गगन के ……
————————–

अपने फलक पर नाज तुझे तो,
मैं भी खुश हूँ अपनी जमीं पर।
मेरी भी बहुत यहाँ कीमत है,
बिदका न मुँह यूँ मेरी कमी पर।

किसने नाम दिया तुझे हिमकर,
तू तो अंगारे बरसाता है रे !
ए चाँद, प्रेम में प्रेमी को अपने,
किस कदर तू झुलसाता है रे !
फिरता आवारा सा रात- रात भर,
फिर भी दोष लगाए सारे हमी पर।

माना के तू विराजित है नभ में,
पर रहूँ न मैं तेरे कदमों तले।
मन यहाँ भाव की पूजा करता,
तू रूप दिखाकर मन को छले।
भूल जाएगा रंगीनी नभ की,
कभी आए जो मेरी सरजमीं पर।

दिन भर सोए रात भर डोले।
दम किसमें जो तुझे कुछ बोले।
शिनाख्त न कोई कर पाए तेरी,
कला निपुण नित बदलता चोले।
तू बिगड़ा शहजादा आसमां का,
क्या जाने फिक्रें कितनी आदमी पर।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 140 Views
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