ओस की बूंँदे !
ओस की बूंँदे ,
मोतियों-सी सजती,
नभ से गिरी ।
गगन अश्रु ,
कोहरे में रो पड़ी,
दर्द-सी भरी ।
भाव विभोर ,
धुन्ध की छटा घोर,
नैना घूरती ।
केश सजते ,
पिरोती माला जैसे,
श्रृंगार बनी ।
अमृत बूंँदे ,
ठंडक का बुलाती,
ओस टपकती ।
लालिमा हँसी,
धुन्ध मिटा नभ से,
ओस मनोहारी ।
धुन्ध मिटी,
इंद्रधनुष सजी,
बूँदो से खिली ।
****बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर ।