ओस की बुन्दे
सितारों की है चमक
मोती सा है लगता
मोल नहीं कोई अनमोल है
सुंदर भेंट है कुदरत का,
कैसे बखान करूँ उसकी
जुगनू की तरह है लगता
कभी आकाश में रहते
कभी फूलों पर है गिरता,
पहले अक्सर दिखाई देते
अब कभी कभार नजर आते
तकनीकी युग में नजाने कंहा
खो गया प्यारी ओस की बुन्दे!