ऑंखें
जाने क्या ये पिला गईं आँखें
इक नशा सा चढ़ा गईं आँखें
मौन थे वो तो मौन हम भी रहे
हाल दिल का जता गईं आँखें
इतनी शातिर ये होंगी सोचा न था
मुझको मुझसे चुरा गईं आँखें
चार उनसे हुईं क्या आँखें मेरी
हूक दिल में उठा गईं आँखें
बेसुकूँ इतना तो न था पहले
नींद मेरी उड़ा गईं आँखें
रूबरू झुक गईं जो शरमा कर
राज़ कितने छुपा गईं आँखें
ख़ाक क्यों हो न आशियां दिल का
बिजलियाँ सी गिरा गईं आँखें
सुशान्त वर्मा