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18 Sep 2017 · 1 min read

ऑंखें

जाने क्या ये पिला गईं आँखें
इक नशा सा चढ़ा गईं आँखें

मौन थे वो तो मौन हम भी रहे
हाल दिल का जता गईं आँखें

इतनी शातिर ये होंगी सोचा न था
मुझको मुझसे चुरा गईं आँखें

चार उनसे हुईं क्या आँखें मेरी
हूक दिल में उठा गईं आँखें

बेसुकूँ इतना तो न था पहले
नींद मेरी उड़ा गईं आँखें

रूबरू झुक गईं जो शरमा कर
राज़ कितने छुपा गईं आँखें

ख़ाक क्यों हो न आशियां दिल का
बिजलियाँ सी गिरा गईं आँखें

सुशान्त वर्मा

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