ऐ साँझ ,तू क्यूँ सिसकती है …….
ऐ साँझ ,तू क्यूँ सिसकती है …….
ऐ साँझ ..
तू क्यूँ सिसकती है
अभी कुछ देर में तिमिर घिर जाएगा
तिमिर की चादर में हर रुदन छुप जाएगा
रुदन उस क्षण का
जब एक किलकारी ने
अपनी चीख से
ब्रह्मांड में सन्नाटा कर दिया
रुदन उस क्षण का
जब एक कोपल
एक वहशी की वासना का शिकार हो गयी
रुदन उस क्षण का
जब दानव बना मानव
दरिंदगी की सारी हदें पार कर गया
रुदन उस क्षण का
जब एक पुष्प से कोई छद्मवेशी मानव
कुकृत्य कर
मानवता को रक्त रंजित कर गया
हाँ,
ऐ साँझ
ये तो रुदन तो वक्त की सुईयों के साथ
शायद
धीरे -धीरे
शून्यता में लीन हो जाएगा
लेकिन क्या कोई
एक मोमबत्ती जलाकर ….
इस रुदन के विरुद्ध आवाज उठाएगा ?
क्या कोई
इस दरिन्दे के नुकीले नाखूनों से
माँ ,बहन,बीवी,और बेटी के पावन रिश्तों को
लहू लुहान होने से बचाएगा ??
हाँ ,हम सभी को
इस दरिंदगी को जड़ से मिटाने के लिए
एक-एक मोमबत्ती जलानी होगी
वहशी नज़रों से
हर चुनरी की लाज बचानी होगी
तभी ,
हाँ तभी ,
तेरे रुदन की ख़त्म कहानी होगी
फिर ऐ साँझ
सचमुच
तू सुहानी होगी
सुशील सरना