ऐ माँ! मेरी मालिक हो तुम।
ऐ माँ मेरी मालिक हो तुम
जग की कष्ट हरता हो तुम
करूं ध्यान तुम्हारा
बढे ज्ञान हमारा
बस इतना कर दो करम।
ऐ माँ मेरी मालिक हो तुम…
जो मुझ में हो छल कपट
उसका करो तुम हरण
बस इतनी शक्ति मुझे दो
सद्गुणों का करूं मैं वरण
ऐ माँ मेरी मालिक हो तुम…..
नित पूजा करू, ध्यान तेरा धरु
अपनी दे दो मुझको शरण
जितनी भोली हो तुम
उतने नादा है हम,
हमको मुस्कुराने की ,वजह दे तो तुम।
ऐ माँ मेरी मालिक हो तुम…
माता की चौकी सजाई
चुनरी बड़ी दूर से मंगाई
थाली मैंने फूलों की बनाई
उसमें कपूर ,बाती की ज्योत जलाई
अब तो माँ दे दो दर्शन।
ऐ माँ मेरी मालिक हो तुम…
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यूपी)