ऐ पत्नी !
ऐ पत्नी !
……..
ऐ पत्नी ! तुम अज़ब ग़ज़ब हो
रहता पास जब मैं तेरे तो, तुम
ज़ुल्म ढहाती हो जुबां से तुम
कनफोड़वा-सी कान फोड़ती ।।
ऐ पत्नी ! तुम ग़ज़ब ढहाती हो
पी-कर लहू पानी से नहाती हो
दूध पिलाती हो ज़बरन मुझको
आँखे दिखलाती हो तुम मुझको।।
ऐ पत्नी ! दूर जाता हूँ मैं जब
बड़ा प्यार जतलाती हो , तुम
और कहती तो कब आओगे
फुल्के-सा मुँह पंचर कर लेती।
ऐ पत्नी ! बड़ी नादां हो तुम
कब समझोगी , मुझको तुम
बरस पर बरस बीते .. मगर
तुम अभी तक न हुई सरस ।।
ऐ पत्नी ! तुम अज़ब ग़ज़ब हो
पत्नी..ही बने रहना चाहती हो
खेर कोई बात नहीं….बने रहो
जमे रहो पद पर बने रहो बस।।
ऐ पत्नी ! तुम अज़ब ग़ज़ब हो
नेताओं ने भी तुमसे. सीख ली
तुमने उनसे न कोई .फीस ली
फिर शागिर्द तुम्हारे .पक्के हैं।।
ऐ पत्नी ! तुम अज़ब ग़ज़ब हो
चाहता हूं मुझे ठोकने से पहले
मैं तुझे जी भर सलाम ठोक दूं
तेरे प्यारे मखमली हाथ रोक दूं।।
?मधुप बैरागी