*** ऐ जानेमन ***
22.5.17 **रात्रि** 10.31
चाहत छुपाकर क्यों होते हो आहत
रखोगे इस क़दर दिल में गर चाहत
क्या कभी पूरी होगी चाहत-ए-दिल
मजबूरी बन पूरी होती नही चाहत ।।
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पाना चाहो गर मनवांछित चाहत
ना करो फिर किसी को आहत
राहत तभी जब चाहत पाओगे
वरना दिल-दिलग्गी कर पाओगे ।।
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घबराते क्यों हो गर दिल पाकसाफ है
घबराते क्यों हो जब आप पाकसाफ हैं
पाकीज़गी यूंही नही मिलती दिलबाज़ार
जब हज़ार आंखे पास ना-पाकसाफ है।
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दिल में मेरे घर बनालो कोई बात नहीं
दिल का शज़र लगालो कोई बात नही
देख लो सोच लो जलबिन ना मुरझाये
शज़र प्यार गर मुरझाये कोई बात नही
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देख ले खुली आँखों से स्वप्न जानेमन
मिलने पर तूं गर ना पहचाने जानेमन
जान निकलने से पहले निकल जाये
ऐसा इंतज़ाम ना कर अब ऐ जानेमन।।
?मधुप बैरागी