ऐसे हाथों में सजने लगी चूड़ियाँ
ऐसे हाथों में सजने लगी चूड़ियाँ
जैसे फूलों पे उड़ने लगी तितलियाँ
ऐसे महकी फ़िज़ा में ये कस्तूरियाँ
जैसे जंगल में फिरने लगी हिरनियाँ
ऐसे गेसू घिरे आज रुख़सार पर
जैसे सावन में घिरने लगें बदलियाँ
उनके होंठों पे बिखरे थे यूँ क़हक़हे
जैसे बिखरी किनारों पे हों सीपियाँ
ऐसे सजकर चले आये तुम रू-ब-रू
जैसे दिल पर गिरें सैंकड़ों बिजलियाँ