ऐसे कैसे हार मान लूं मैं।
सुनहरा है उसका भविष्य ।
कुछ ऐसा ही दिखता है।
उसके वर्तमान का दृश्य।
नन्ही चिड़ियां जैसे तू फुदकती है।
अपने मां के साथ साथ उड़ती है।
तिनका तिनका जोड़कर ।
वो अपना घोंसला बुनती है।
आंधी,तूफान के विपरित उड़कर भी।
वो हर परिस्थितियो से सामना करती है।
वो ख्वाब के उड़ान से नहीं ।
बल्कि हौसलों के उड़ान से इतिहास रचती है।
रहती है वो कायम ।
दिल से मुलायम ।
हकीकत है वो।
नहीं है कोई वहम।
चमकेगा उसका भी इक दिन सितारा ।
लहरों से लडने वाले नहीं देखते है किनारा।
समंदर का मोती है वहीं पाता।
गोताखोर सा जो है गहराई में डुबकी लगाता।
जीतने से पहले जो है मन से हारा।
उसके लिए है बंद दुनिया का हरेक पिटारा।
पीतल नहीं है वो।
क्रिस्टल नहीं है ।
कोई भयावह पिस्टल नहीं है।
न ज्वालामुखी है ना कोई सिंधु है।
न कोई रेखा है न कोई बिंदु है।
सागर में मिलते हुईं वो एक नदी है।
कहे जो गलत को गलत ।
सही को सही।
संस्कार, अनुशासन।
व्यवहार , लगन ।
ज्ञान की मुस्कान ।
झलकता है जिसमें सादगी हर क्षण।
करने को हर पल नई कुछ पहल ।
ढूंढ निकाले जो हर समस्या का हल।
लक्ष्य की ओर जब उसने है पांव बढ़ाया।
तो फिर कैसे की वो जाएगा फिसल।
क्या नहीं होगा।
अगर आप चाहो तो पश्चिम से जाएगा सूरज निकल।
मिलेंगे आलोचक बुराई करने वाले।
हम नहीं है उनसे रुकने वाले।
तिल तिलकर जलकर अरोड़ा डालने वाले।
कौन है जो इनकी बातो को लें हृदय पर।
है ये बेवजह बरसाती मेंढ़क सा टर टर करने वाले।
पतझड़ के बाद जैसे आती है बसंत।
रात के बाद जैसे निकलती है सूर्य की किरण।
धैर्य रखो मन से साहस ना खोवो।
रखो खुला सदैव मस्तिष्क पटल।
यही कहती है शीतल ।
रहती है शीतल।
है जो निश्छल।
व्यक्तित्व है जिसका सरल।
बुद्धि है जिसकी प्रबल।
हूं मैं इक लड़की भारत के सड़क की।
कहती ह जो मैं उसको हूं करती।
होती गर ना ये लड़कियां ।
तो संसार में न कोई रौनक होता ।
किलकारियां तक ना गुजती किसी की न कोई बच्चा रोता।
मां,बहन,बहू,बेटी के बगैर ।
ये संसार किसी नरक से कम न होता।
ठान लिया है जो।
होना है उसका तय।
लड़की नहीं शेरनी है वो ।
बन लक्ष्मीबाई सी खड़ी है जो।
मिटा देगी अन्याय का नामोनिशान।
जयकारों से गुजेगी हर इक दिशा।
बना देगी जो हवा में महल।
निहारिका सी बनके चमके वो शीतल।
Poet – RJ Anand Prajapati