ऐसी क्या बात हुई
ऐसी क्या बात हुईं
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ऐसी क्या बात हुई,
दिन मे ही रात हुई।
कैसी यह चाल चली,
क्यों भीतर घात हुई।
बादल तो पास नहीं,
पल् मे बरसात हुई।
जीवन में आज कहीं,
यह पहली मात हुई।
मनसीरत जान गया,
कुछ् तो शुरुआत हुई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)