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6 Jun 2022 · 1 min read

ऐसा मैं सोचता हूँ

कुछ खोये बिना पहुंच चुका है वह,
उसकी वृद्धावस्था की मंजिल पर,
कदम चाहे, दो कदम नहीं बढ़ा पाया वह,
चेहरा चाहे कोई नहीं बांध पाया वह।

लेकिन सिर पर शोभित है उसके,
सफेद केश एक शान बनकर,
उसको अब सन्यासी बनना है,
और लेना है तलाक गृहस्थी से।

सारे प्रशिक्षण और शिक्षण,
वह पा चुका है ब्रह्माश्रम में,
और बाँट चुका है अपनी शिक्षा,
वह अपने विद्यार्थियों को।

यह उम्र का तकाजा है,
बहुत कर चुका है वह,
सरकारी सेवा अब तक,
और हो चुका है अब वह,
सेवानिवृत्त सरकारी नौकरी से।

वैसे मिलना चाहिए दूसरे को भी,
सरकारी सेवा का अवसर,
वह भी अनुभवशील है बहुत,
और करता है चिंतन वह भी,
अब वह इतना सक्षम नहीं है।

करना चाहिए उसको अब,
हरिभजन दुनियादारी छोड़कर,
ताकि पा सके वह पुण्य,
क्योंकि वह योग्यता प्राप्त है,
ऐसे कार्य करने के लिए,
ऐसा मैं सोचता हूँ।

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847

Language: Hindi
1 Like · 278 Views
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