ए जिंदगी तेरी किताब का कोई भी पन्ना समझ नहीं आता
ए जिंदगी तेरी किताब का कोई
भी पन्ना समझ नहीं आता ।
कितने दिन बीत गए और कितने
दिन है गुजारना समझ नहीं आता।
कौन सा पन्ना रख लूं संभालकर और
कौन सा है फाड़ना समझ नहीं आता।
कभी हैरान करती है तू मुझे तो कभी
तेरा रुलाना समझ नहीं आता।
पर तूने दिए हैं बेशकीमती तोहफे भी मुझे
कैसे करूं तेरा शुक्राना समझ नहीं आता।