मन में रक्खे
मन में रक्खें बैर की भावना।
दुष्ट है वो, संत नहीं है।।
सीमित रखिये विषय-वासना ।
इच्छाओं का अंत नहीं है ।।
व्यर्थ है फिर ज्ञान तुम्हारा ।
सोच में जब तर्क नहीं है।।
रिक्त है जो मानवता से।
ईश्वर का वो भक्त नहीं है।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद