एहसास-ए-हक़ीक़त
इन साफ -शफ़्फ़ाफ़ कपड़ो के पीछे छुपे मैले दिल को तो देखो,
मैले कपड़ों के पीछे पैवस्त इस दिल के हीरे को तो देखो,
भटकते रहे ज़िंदगी भर झूठ के सराबों में ,
एहसास -ए -हक़ीक़त के इन नज़ारों को तो देखों,
अपनों को ठुकरा कर गै़रों का दामन थाम लिया,
अपनों की क़ुर्बानी के जज़्बातों को तो देखो,
इंसां को तौलते रहे अब तक दौलत की तराज़ू में ,
कभी इंसानियत की क़ीमत पहचान कर तो देखो ,
ज़िंदगी गुज़ार दी अब तलक खुदगर्ज़ रहकर ,
कुछ वक़्त मज़लूमों के हमदर्द बनकर तो देखो।