ए’तिराफ़-ए-‘अहद-ए-वफ़ा
दर्दे दिल दे गया वो ही ,
मेरी वफ़ाओं का सिला दे गया वो ही,
चाहा था जिसे हमने ज़िंदगी से बढ़कर ,
चला गया मुंह फेर वो ही अजनबी बनकर ,
हसरतों के आशियाने टूट कर बिखर गए ,
बहारों के ख़्वाब ख़िज़ाँओं मे बदल गए ,
तोड़कर अहदे वफ़ा हमें भुला,
वो किसी और के हो लिए,
उन्हें हम ना भुला सके ,
ए’तिराफ़-ए-‘अहद-ए-वफ़ा में
सिर्फ उन्ही के होकर रह गए ,