एक ग़ज़ल
यूँ ज़िन्दगी तू मुहाल मत कर
इसे तू ख़्वाहिश का जाल मत कर
रहेगा चुप जो तो जी सकेगा
तू मौन रह बस सवाल मत कर
निखार क़िरदार ही बस अपना
तू जिस्म की देखभाल मत कर
दिया ख़ुदा ने जो क्या वो कम है
जो है न हासिल मलाल मत कर
मिलेगी मंज़िल चला चले जो
तू हौसले को निढाल मत कर