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12 Sep 2017 · 1 min read

एक ग़ज़ल

यूँ ज़िन्दगी तू मुहाल मत कर
इसे तू ख़्वाहिश का जाल मत कर

रहेगा चुप जो तो जी सकेगा
तू मौन रह बस सवाल मत कर

निखार क़िरदार ही बस अपना
तू जिस्म की देखभाल मत कर

दिया ख़ुदा ने जो क्या वो कम है
जो है न हासिल मलाल मत कर

मिलेगी मंज़िल चला चले जो
तू हौसले को निढाल मत कर

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