एक सात्विक रिश्ता : सच्ची मित्रता
निःस्वार्थ , निर्विकार , निष्पक्ष , निष्पाप भावों से युक्त होता है सच्चा मित्र । एक सच्चा मित्र जीवन का सबसे अनमोल उपहार है । उसकी रिक्तता से जीवन नीरस हो जाता है ।
मित्रता सामाजिक संबंधों में सर्वाधिक सुचितापूर्ण , शर्तरहित , मनुष्य का मनुष्य से अनायास ही स्वयंनिर्मित एक पवित्र – पावन , मन भावन सर्वप्रिय मानसिक व वैचारिक मिलन है । यह मिलन लिंग , वर्ग , वर्ण , धर्म , अर्थ आदि अनेक भेदों से परे होता है । यह मिलन न संम्प्रदाय देखता है न जाति , न रंग भेद देखता है न लिंग भेद ।
एक सच्चा मित्र स्त्री या पुरुष की सीमाओं में बंधा न होकर सिर्फ एक मित्र होता है । कहीं न कहीं समाज में यह एक भ्रांत धारणा व्याप्त है कि स्त्री और पुरुष के बीच मित्रता का रिश्ता नहीं हो सकता । इस अपरिपक्व विचार के कारण अनेक बार देखने में आता है कि दो अच्छे मित्रवत संबंध रखने वाले स्त्री व पुरुष स्वयं को प्रत्यक्षतः एक दूसरे का मित्र कहने में भी संकोच का अनुभव करते हैं । जबकि यह यथार्थ में कृष्ण रूप में एक ऐसा आत्मिक व सात्विक संबंध है जो कृष्णा के अंतस की पुकार सुन सकता है और द्यूतसभा में मूक दर्शक बने सभी निकट संबंधियों , शासकों , राज्याधिकारियों की नारी सम्मान के प्रति कर्तव्य विमुखता से दुःखी हो सिर्फ उसके मान की रक्षा हेतु प्रकट हो सकता है साथ ही उसे आत्मसम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा भी दे सकता है ।
जीवन में जिसके साथ हम इंद्रधनुषी रंगों का आनंद बाँट सकें , जिससे अपनी हार जीत सांझा कर सकें , जिसे अपने सुख दुःख समझा सकें , जिसे जीवन राह में कहीं भी – कभी भी प्रत्यक्ष या परोक्ष अपने साथ खड़ा पाएँ , वही होता है सच्ची मित्रता का विकार रहित सच्चा स्रोत , सच्चा मित्र ।
डॉ रीता
एफ – 11 , फेज़ – 6
आया नगर , नई दिल्ली – 47