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8 Aug 2023 · 1 min read

एक संदेश बुनकरों के नाम

तुम खुरदरा पहन
हमें रेशम पहनाते आए
तुम दिन रात मेहनत करके
हमें सजाते आए
तुम्हारी कला
तुम्हारी कारीगरी
तुम्हारी कल्पना
उसकी बारीकी
फिर उसके रंग बिरंगे
संयोजन का
सिलसिला
पीढ़ी दर पीढ़ी
यूँ ही चला
लम्बे पतले धागों से
हर किसी के
मनभावन
सपनों को बुना
फिर भी तुमने
अज्ञात रहना ही चुना
कहीं जरी से संजोया
कहीं पल्लू में
चार चाँद लगाए
जिस धरोहर को
सहेजने लायक़ बनाते
बचाते,पहनाते तुम
सदियों से हमें
सौन्दर्य सम्पन्न
बनाते आए
काश वो ही तुम्हें
बड़ी सी पहचान
और बड़ा सा नाम
दिला पाए

डॉ निशा वाधवा

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