एक फूल अधखिला सा
मैं जिन्दा हूं पर
पूरी तौर पर नहीं
मैं मर गई हूं पर
पूरी तौर पर नहीं
यह जीवन मुझे लग रहा है
एक फूल अधखिला सा जो
सूरज की तपिश न मिलने के
कारण
न खिल रहा है
न मुर्झाने को तैय्यार है
चांदनी रातों के सायों के
अभाव में
कुंठित सा है मन
कुछ भी निर्णय लेने की स्थिति
में नहीं
समय का प्रवाह है कभी तेज
कभी कम तो
कभी थमा हुआ सा
इसका प्रभाव मन के हर कोने में
है रमा
बेचैन है इसमें रह रहा प्राणी
बहुत
वह जीना चाहता है पर
कैसे
यह समझने के लिए
अपनी प्राण शक्ति को
विकसित कर ही नहीं पा
रहा।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001