एक पिता की जान।
बड़ा तन्हा हो गया है वो बागवान।
परिंदे सारे उड़ गए रह गया वो बेजान।।1।।
रोपे थे शजर अपने हाथों से कभी।
हो गए सारे के सारे वो उससे अंजान।।2।।
रात दिन रास्ता देखती उसकी आंखे।
बेटों के लिए पर रास्ते रहते सूनसान।।3।।
बड़े अरमानों से पढ़ाया लिखाया था।
सोच-सोच के होता वो बड़ा परेशान।।4।।
पीसर हैं कैसे बद्दुआ दे दे वो उनको।
अहद था बीवी से रहेगा वो रहमान।।5।।
आया ना कोई देखने को उसका हाल।
यूं देखो चली गई एक पिता की जान।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ