एक पल में न जाने ये क्या हो गया
एक पल में न जाने ये क्या हो गया
वो गये छोड़कर पल सज़ा हो गया
क्यों हुआ कम मगर सिलसिला हो गया
देखते – देखते फ़ासला हो गया
था नहीं ये मेरा थी न हमको ख़बर
दिल मेरा आज से आपका हो गया
उसका जुमला सुना पर न आया समझ
पार सर से मेरे इस दफ़अ हो गया
पैर उसके ज़मीं पर नहीं पड़ रहे
क्या ख़जाना मिला फ़ायदा हो गया
कोई अनपढ़ नहीं है सभी हैं पढ़े
तंग ज़ह्’नों का क्यों दायरा हो गया
प्यार उससे नहीं था मगर फिर भी क्यों
फ़र्क़ मुझ पर पड़ा जब जुदा हो गया
था यक़ीं भी बहुत उसपे लेकिन मुझे
मुझको झूठा कहा ख़ुद खरा हो गया
कल बुरा उसको कह भी रहे थे सभी
आज ‘आनन्द’ कैसे भला हो गया
– डॉ आनन्द किशोर