एक दिन यह समय भी बदलेगा
एक दिन यह समय भी बदलेगा
पुराने पत्ते झड़ेगे नए पत्ते आएंगे
हर एक कश्ती के किनारे आएंगे
हौसले बीच में ही थमने ना पाएंगे
हवाओं के रुख भी बदल जाएगें
कई चेहरों से नकाब हट जाएंगे
बहुत जल्दी अच्छे दिन आएंगे
लोगों के ताने मंजिलें दिलाएंगे
शबरी की कुटिया में राम आएंगे
जैसे पतझड़ में मानो बसंत लाएंगे
मुरझाऐ हुए पड़े थे जो फूल कभी
वह अब फिर से खिलखिला जाएंगे
एक दिन यह समय भी बदलेगा
मौसम की बहार फिर से आएगी
हर फूल खिलेगा अब दोबारा से
हर कली फिर फिर मुस्कुराएगी
मरुभूमि में होगी अनंत बारिन
पतझड़ में सावन आ जाएगा
किसान के चेहरे पर फिर से
खुशी का आलम छा जाएगा
भवरा फिर अब झूम उठेगा
तितली फिर फिर मडराएगी
खुशी का छा जाएगा माहौल
कोयल भी मधुर गीत गाएगी
मोर भी अपने पंख फहराएंगा
अपना नृत्य अजब दिखाएगा
हंस को देखो सुंदर कितना
दृश्य वह अजब बना जाएगा
सावन जब आ जाएगा
बरसा अजब वो लाएगा
बारिश का आलम आने दे
सरल भी अब भीग जाएगा
कवि दीपक सरल