एक थी कोयल
ये गुलशन मधुमय हो जाता,
कोयल जब लय में गाती थी।
भारत अवनी होती सुरमय,
संग दुनिया सुन हर्षाती थी।
मंगेश्कर दीनानाथ सुता,
मां शारद की अनुयायी थी।
निज कोकिल कंठ से दुनिया को,
सुर गान सुनाने आयी थी।
संगीत तपस्या किया सदा,
वैरागी सा जीवन उनका।
व्यक्तित्व सौम्य सादगी भरा,
निष्कलुष भाव था तनमन का।
अनुराग भरे स्वर सम्राज्ञी,
रागों की जानन हारा थी।
अनमोल रत्न वह भारत की,
सबकी आंखों का तारा थी।
सुर का खग समय बहेलिया के
चिरनिद्रा जाल में छला गया।
बगिया सुनी हो गई बहुत,
कोकिल को लेकर चला गया।
थी शान मान मेरे भारत की,
है कहाँ चली गयी नहीं पता।
भारी मन से पुष्पांजलि व
श्रद्धा अर्पण मेरा तुम्हें लता।
-सतीश सृजन, लखनऊ.