एक तस्वीर तुम्हारी
तुम्हारी एक तस्वीर ,
भेजी गई मुझको,
देखने के लिए रूपरेखा,
पसंद-न-पसंद का निर्णय करना,
कुछ सवालों का जवाब भी देना,
और देख मैं निहारता रहा,
स्तब्ध एहसास करता रहा,
क्या कहूंँ मैं अब,
सुंदर और गोरी काया को,
तस्वीर बस निहारता रहा,
कि एक पल में बोल उठी तुम,
मुझे नहीं पसंद हो आप,
हमें यूँ ही ना गौर से देखो,
हृदय हमारा धड़क रहा,
मीठी-मीठी बातें नहीं हुई तुमसे,
एक कप चाय नहीं पी हमसे ,
दूर से ही देखते रहेंगे मौन होकर ,
या गौर फरमाएंगे ,
मेरी अच्छाईयों पर भी ,
सुशील गुणवती भी हूँ,
आज के दौर की नारी हूँ,
सिर्फ सिंगार नहीं सजती,
घर परिवार और समाज में सहयोग करती हूँ,
विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान भी पाती ,
आप की भांँति मैं भी संतान हूँ,
कमियांँ तो इंसान में होती है ,
कुछ आप में हैं कुछ मुझमें भी ,
बात हृदय को समझने की है ,
ना कि माप-तौल करने की,
सहज प्रेम भाव से रिश्ता जोड़ने की है ,
पढ़ी लिखी शिक्षित नारी हूँ,
किसी का अधिकार नहीं है मुझमें ,
जीवन में भागीदारी समान है ,
अब ‘ हांँ ‘ कह दो ,
समझ आती हूंँ तो ,
अन्यथा बाद में मत कहना ,
रिश्ते की डोर जीवन भर का होता है ,
पसंद करना है तो हृदय को देखो ,
यूंँ ही तस्वीर को मत घूरो..।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।