एक झलक
फूल चुभते ही रहे, पर कांटों को, बिछाया नहीं हमने
जिसे माँगा खुदा से , उसको कभी पाया नहीं हमने
नींद में जागे हुए, सपनों को सजाया नहीं हमने
बीते फैसलों को, कभी भी दुहराया नहीं हमने
पश्चाताप की अग्नि में, खुद को जलाया नहीं हमने
कोस के क़िस्मत, कभी पथ बनाया नहीं हमने
ढकोसलों के मुहावरे, कभी सुनाया नहीं हमने
द्वीप टापू दीप नये, ज्योति जलाई प्रीत ने
आंसुओ को पौंछा, घर आए हमारे मीत ने
संस्कृति को जागृत, कर दिया मधु गीत ने
मोतियों को अंकुरित, कर दिया उह सीप ने
दो रूप, एक आत्मा, इस सोच ने कर दिया समीप में
भाग्य के पत्ते खुले, व्यतीत कर्म के संघर्ष में
आपको पाकर जीवन, धन्य हो गया है हर्ष में