एक गरीब मजदूर (भाग 2)
अपने गांव से दूर,
किसी अनजान शहर में,
अपना छोटा सा परिवार,
दो बच्चे और बीवी सहित,
एक छोटे से तंबू में
रहने को मजबूर
“एक गरीब मजदूर” ।
न ही पौष्टिक,
न ही स्वादिष्ट भोजन,
छह ईंटो से बने चूल्हे में
झटपट बनी कच्ची पक्की रोटियां
साथ मे कच्चा प्याज या चटनी
खाने को है मजबूर
“एक गरीब मजदूर” ।
न ही पलंग है,
और न ही गद्दा है,
रेती, गिट्टी, सीमेंट के
ऊपर ही अपने चादर
बिछाकर सोने को मजबूर,
“एक गरीब मजदूर” ।
मेहनताना
कब, कहाँ और कैसे
खर्च हो जाते पता ही नही लगता ।
बच्चो के लिए नए कपड़े, राशन,
बीवी के लिए नई साड़ी ।
पर अपने लिए कुछ न बच पाना ।
इसलिए फ़टे – पुराने कपड़े
पहनने को मजबूर,
“एक गरीब मजदूर” ।।
गोविन्द उईके