*** ” एक ख़त : जो शाम आया…….!!! ” ***
* * एक ख़त , ( ” एक युवा बेरोजगार को .. ! “)
जो शाम आया ;
पढ़ा ओ ख़त…,
अपना नाम पाया।
ख़ुशी से झूम उठा ,
और मन बहुत इठलाया ;
चूंकि ओ ख़त एक पैग़ाम लाया ।
सोचा मैंने एक पल के लिए ,
ओ इंतजार मेरा रंग लाया ;
घर में, खुशियों की लहर ,
और नेक-अनेक सपनों के बहार आया ।
क्योंकि डाकिया ने…! ,
नौकरी का एक ख़बर लाया ।।
लिखा था ख़त में…. ,
” शरहद की ओर जाना है ।
आतंकियों को , मार भगाना है। ”
मन में एक द्वंद विचार आया…,
” मैं इधर माँ-बाप का श्रवण कुमार….। ”
” उधर सीमा पर आतंकियों के ललकार…। ”
पर ……..!
अंतर्द्वंद्व का निर्णयक , एक सुझाव आया ,
” यह तो मातृभूमि की आव्हान् है। ”
” जिस पर अनेकों श्रवण कुमार कुर्बान है। ”
माँ-बाप ने… ,
” सदैव विजयी भव..! , का तिलक लगाया। ”
मैंने फिर…,
” शरहद की ओर , सरपट घोड़ा दौड़ाया। ”
‘ तिरंगा ‘ शरहद पर हमनें ,
” अनेकों बार लहराया । ”
और ” विजयी गौरव गीत गाया। ”
” विजयी गौरव गीत गाया।। ”
*** एक ख़त , ( ” एक पत्नी के नाम ….! ” )
जो शाम आया ;
ख़त पढ़ा…,
” प्राण-प्यारी , मधुलिका नाम पाई !”
मेरी आँखें भर आईं….!,
फिर भी.., मैं बहुत शरमाई ।
ख़त में एक तस्वीर , नजर आई…!
उसने बहुत मुस्कुराया ।
पावन-मधुर-बेला की याद भी बहुत आई…!
फिर…, उनकी यादों ने ,
मेरा मन गुदगुदाया ।
प्रथम-मिलन की बात… ,
उसनेे भी , बहुत बार दुहराई ।
अंतर्मन को रोक न पाई ,
रंग-बिरंगी सपनों से…,
मन-मंदिर में , एक ” प्रेम-दीप ” जलाई।
फिर…
पवन के झौंकों ने , अनचाहे ;
ओ ख़त , मेरे हाथों से चुराई।
और उसने ही मुझे…,
एक ” सैनिक-पत्नी ” होने की याद दिलाई।
तब…
ओ बात , झट से , मेरी समझ में आई ।।
” मन का मतवाला है…! ”
” वो तो शरहद का एक रखवाला है…! ”
” मेरी ‘ मांग ‘ सजाने वाला है…! ”
” वो तो शरहद का एक रखवाला है…! ”
*** एक ख़त , ( ” एक माँ-बाप और पत्नी के नाम..” )
ओ शाम आया ;
डाकिया ने…! ,
पढ़ के सुनाया।
क्योंकि….! ,
” पत्नी बहुत बिमार है ।”
” माँ-बाप अंधापन का शिकार है।”
डाकिया ने…!
ओ ख़त भी ढंग से पढ़ न पाया ।
चूँकि , आँखो में आंसू भर आया।
क्या हुआ , डाकिया बाबू…?
” कुछ ख़बर तो सुनाओ !
फिर एक आवाज आया…,
” बेटा शरहद पर गया है। ”
” कई दिनों से लापता है। ”
पर …..!,
दिन.. , पखवाड़ा.. , महिना…;
और साल गुजरता गया ।
फिर……!
एक शाम….
ओ ख़त आया ,
पुराना ख़बर दुहराया ।
लेकिन …..!
” एक ‘ पत्नी ‘ का हम-सफर । ”
” एक ‘ माँ-बाप ‘ का जान-जिगर। ”
” और वतन का , वो लाल-कुवंर । ”
अभी तक….,
” लौट के घर नहीं आया….! ”
अभी तक….,
” लौट के घर नहीं आया…!!
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छ . ग . )