एक कप कड़क चाय…..
एक कप कड़क चाय
और उनकी बात
जैसे चाय में
शक्कर की घुलती मिठास
थोड़ी इलाइची खुशबू सी याद
बस वो ही नहीं चाहते
करना कुछ संवाद
फिर भी उनको दे आमंत्रण
किया मेंने भी इंतजार
पर….
जिन्हें आना था वो न आए
बदले में अनचाहे
कुछ पद जोड़े
मोड़ राह
दाखिल घर में हो गए
आए फिर चाय पीने
कुछ बातें करने
बस चाय के बहाने
बड़ी मुश्किल से
पीछा छुड़ाया जिनसे
चाय पिलाकर दफा किया जिन्हें
और
चाय पीकर जो दफा हुए..
वो फिर से दफा होने के लिए
चाय पीने आये…….
उफ्फ..
दिल की गलियों में
आवारा बंजारे सी फिरती
चाय
आज फिर मुँह को लग गई…
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)