* एक ओर अम्बेडकर की आवश्यकता *
एक ओर अम्बेडकर की आवश्यकता
एक ऐसा शख़्स जो अभावो में पला
यह नहीं कह सकते हम क्योंकि वह
अभावों को ठेलता हुआ आगे निकला
वक्त का सीना चीरते समाज-ए-चिराग सा
वक्त के सघन अँधेरे को चीर तीर-सा निकला
जहां के अंध-मन्द समाज को रोशनी करने
अकेला ही समर में युद्धवीर – सा निकला
रचे थे चक्रव्यूह अनेक समाज कंटको ने
मगर वह वीर-धीर निष्कंटक निकला
दिया वो संसार-समृद्ध महान संविधान
जिसमें समता का अधिकार सर्व समाज
सर्वधर्म को एक समान बेरोकटोक दीना
विशेषतः महिलाओं को तो सर्वाधिकार
हमारे बाबा साहब ने संविधान में दीना
मगर आज कितनों को पता है यह स्त्री
समाज को हक बिनभेद जीने का दीना
मगर वैषम्य आज भी कायम है क्योंकि
बिनभेद अभी तक जीना नही सीखा
दुनियां मानती है लोहा ज्ञानी दानी का
हमने उस हस्ती का सम्मान नहीं सीखा
विश्व की महाशक्तियां नतमस्तक है
जिस महान विभूति के श्रीचरणों में
हमने अपना अवदान नहीं सीखा
विश्व के राष्ट्र माने जिसकी ज्ञान-गरिमा
हमने सर्वजन सम्मान नहीं सीखा
ये कैसा देश है अपना जहाँ अपनों का
हमने बिन-भेद सम्मान नही सीखा
यह कैसा भारत है बनाने वाले का
सर्वजन ने करना सम्मान नही सीखा
दुनियां मानती हो ज्ञानी चाहे
जन्म को उसके ज्ञान-दिवस में मनावे
मगर यह आज भी भारत है जहाँ
व्यक्ति ज्ञान से नहीं जाति से पूजा है
कितना भेद है अब भी फिर भी लोग
विषमता में समता की बात करते हैं ।।
मना लें विश्व चाहे ही
उनके जन्मदिवस को
ज्ञान – दिवस भी
मगर हिंदुस्तान
में अब भी
अज्ञान – अँधेरा है ।।
शायद इसलिए
अब भी
ज्ञान का दीप
जलाने को
एक ओर अम्बेडकर की
महत्ती आवश्यता है ।।
? मधुप बैरागी