एक अनु उतरित प्रश्न
गीले लिहाफ, अश्क बह सुख गए
जीवन के रंगोली के कुछ चित्र धुलपुंछ गए,
अंतिम घड़ी अब विश्राम कान्हा , आवागमन के आरोह अवरोह में फंसी सांसे..जो रुक जाती थी कभी आहट से ..खोने के भय से मृतप्राय देह में शून्य पड़ी आज ..
सुधबुध को धरी की धरी रह जाती हर काज.. चातक सी
अपलक पलके निहारती ,मानो साधना में लीन हो आज..
गूंजती थी किलकारियां जिससे..
अलविदा कह विदा हो गई आज हाथों की लाली भी ना छूटे ..
छोड़ गई… रूदन, सिसकियां, सुबकते कलरव …बस चंहुओर चीत्कार ही चीत्कार …
और एक अनु उतरित प्रश्न
पल काट ले …ये घड़ियां…
फिर अनवरत विश्राम होगा
शाश्वत प्रीत प्यास लिए फिर.. अनवरत विश्राम ही विश्राम होगा