*** ” एक अनुप्रयोग……!!! ” ***
# कोई बड़ा हो या छोटा ,
सबका अपना एक अस्तित्व होता है ।
लेकिन….!
‘” मय ” का सफर , और अहंकार का डगर ,
पतन के साथ गर्त में होता है ।
हम सबको पता है ,
प्राकृतिक संख्याओं का आधार ,
शून्य (०) और नौ (९) होता है ।
किसी का स्थानीय मान कम ,
और किसी का अधिक होता है ।
९ का मान बड़ा था ,
इसलिए उसमें कुछ ज्यादा ही अकड़ था ।
एक बार संख्या ९ ने ,
८ को थप्पड़ मारा ।
८ बहुत रोने लगा……! ,
और पूछा मुझे आप ने क्यों मारा ।
९ ने बड़े ही गर्व से बोला,
मैं सबसे बड़ा हूँ , इसलिए मारा ।
यह सुनते ही , ८ ने ७ को मारा…..! ,
और ९ वाली बात को दुहरा दिया ।
फिर क्या…!
” ७ ने ६ को मारा ”
” ६ ने ५ को मारा ”
” ५ ने ४ को मारा ”
” ४ ने ३ को मारा ”
” ३ ने २ को मारा ”
और ” २ ने १ को मारा ”
अब ” १ ” किसको मारे ,
” १ ” के नीचे ” ० ” था।
” १ ” ने कुछ विचार किया ,
उसने ” ० ” को नहीं मारा ;
प्यार से उठा लिया ।
और अपनी बगल में बैठा लिया।
जैसे ही बैठाया…..! ,
” १ ” की ताकत ” १० ” हो गई ।
और यह देखकर अब ,
” ९ ” की हालत पस्त हो गई ।
फिर होना क्या था….! ,
” ९ ” की अकड़ खत्म हो गई ।
और ” १० ” से नतमस्तक हुई ।
शायद…! ,
कुछ निष्कर्ष निकल आया हो , इस कथन से ।
कैसे पतन हुई , आस्तित्व अब ” ९ ” की ,
” १ ” और ” ० ” की मिलन से ।
कहता है मेरा मन आवारा ;
डूबने पर समझ आता है , तिनके का सहारा।
मित्रों…..!!! ,
” जिंदगी में किसी का साथ काफी है । ”
” कंधे पर किसी का हाथ काफी है । ”
” दूर हो या पास….! , क्या फर्क पड़ता है ;
एक अनमोल रिश्तों का एक ‘ अहसास ‘ ही काफी
है ….!!! ”
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* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
६ / ०४ / २०२०