एकाकी (कुंडलिया)
एकाकी (कुंडलिया)
एकाकी आया मनुज , एकाकी प्रस्थान
आया है किस लोक से ,अगला पथ अनजान
अगला पथ अनजान ,धरा पर खेला – खाया
यहीं मिले सौ मित्र , बंधु – बांधव को पाया
कहते रवि कविराय ,रंग रहते कब बाकी
अंतकाल जब क्रूर, आदमी फिर एकाकी
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451