Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Nov 2022 · 12 min read

एकलव्य

एकलव्य –

उत्कर्ष डॉ तरुण डॉ सुमन लता का बेटा दस वर्ष का हो चुका था और फिफ्थ स्टैंडर्ड में पढ़ रहा था
डॉ सुमन लता डॉ तरुण विराज डॉ तांन्या उत्कर्ष को बहुत प्यार करते थे था भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक एव तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता का हाजिर जबाब ।

उसकी जिज्ञासा का कोई आदि अंत नही था सवाल बहुत करता और जबाब के लिए परेशान एक प्रश्न का जबाब मिलने पर दूसरा फिर तीसरा उसकी जिज्ञासा और प्रश्न पूछने से कभी कभी दादा विराज कभी दादी तांन्या एव मम्मी पापा को निरुत्तर कर देता।

पूरे घर को आसमान पर उठाए रखता उसकी शरारतों से पूरे घर मे उत्साह एव खुशी का वातावरण बना रहता दादा दादी माता पिता सभी भगवान से यही प्रार्थना करते कि उत्कर्ष को किसी की नज़र ना लगे ।

उत्कर्ष दिल्ली के प्रतिष्टित कॉन्वेंट में पढ़ रहा था अपनी पढ़ाई में भी पूरे स्कूल में अलग पहचान बना रखी थी जब भी विराज या तरुण या डॉ लाता या तांन्या उत्कर्ष के स्कूल जाते अभिमान गर्व से सर से ऊंचा हो जाता ।

कभी कभी दादा विराज दादी परिहास के अंदाज में कहते भी की लगता है तरुण एव डॉ लता का बेटा नामानुरूप उत्कर्ष पर उत्कर्ष की छाया पड़ गयी है ।

उत्कर्ष के स्कूल में जितने भी कार्यक्रम होते गीत संगीत नाटको पंद्रह अगस्त छब्बीस जनवरी सरस्वती पूजन टीचर्स डे आदि पर सदैव उत्कर्ष ही सर्वश्रेष्ठ रहता।

स्कूल को भी उत्कर्ष पर सदैव अभिमान रहता मात्र दस वर्ष की उम्र में इतना अधिक प्रिय एव ख्याति स्कूल से लेकर सहपाठियों में पा चुका था उत्कर्ष की किसी के लिए भी अभिमान का विषय हो सकता है।

उत्कर्ष की प्रतिभा से पूरा परिवार ईश्वर के प्रति कृतज्ञ था सेंट स्टीफेन कान्वेंट में नाटक का मंचन होना था नाटक था एकलव्य जिसमे एकलव्य की भूमिका का निर्वाहन उत्कर्ष को निभाना था।

एक दिन उत्कर्ष के क्लास टीचर मारिया ने उत्कर्ष को बुलाया उंसे एकलव्य के अभिनय का संवाद पोषक एव अन्य निर्देश दिये अर्जुन का रोल स्कूल के एक अन्य विद्यार्थी रितेश को दिया गया था ।

उत्कर्ष अपने किरदार के संवाद का नोट लेकर घर आया और रोज उंसे याद करने की प्रैक्टिस करता नाटक का रिहल्सर नियमित होता क्योकि प्रस्तवित नाटक के मंचन के समय गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति सुनिश्चित थी ।

विद्यालय प्रशासन भी किसी तरह की कोताही कार्यक्रम की सफलता में नही बरतना चाहता था धीरे धीरे नाटक के मंचन की तिथि सिर्फ दो दिन शेष रह गयी और अंतिम रिहल्सल हो रहा था जो बहुत शानदार रहा।

स्कूल ने चैन कि सांस लिया रिहल्सल समाप्त होने के बाद बच्चे अपने अपने घर जाने के लिए स्कूल बस में सवार हुए बच्चे अपने अपने रोल के साथ साथ उत्कर्ष के रोल कि उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए तारीफ कर रहे थे रितेश को ऐसा लगा कि उसे कुछ कम अर्जुन के रोल के लिये सराहना मिल रही है ।

बाल मन उसने बरबस ही बोल दिया कि उत्कर्ष आदिवासी परिवार से है आदिवासी कल्चर उसके खून में है इसीलिये उसने अपने नेचुरल रोल को बखूबी निर्वहन किया है और करेगा।

उत्कर्ष को तो पता ही नही है कि वह आदिवासी समाज परिवार से सम्बंधित है वास्तव में आदिवासी क्या होते है उंसे पता ही नही था वह चुप हो गया और किसी से कुछ नही बोला वह सीधे घर पहुंचा और सीधे अपनी मम्मी के पास जाकर पूछ बैठा मम्मी आदिबासी का मतलब क्या होता है ?

डॉ सुमन लता ने जब बेटे के मुंह से पहली बार ऐसा प्रश्न सुना तो आवक रह गयी उन्होंने उत्कर्ष से ही सवाल कर दिया बेटे उत्कर्ष तुम्हे आदिबासी कहा से मालूम हुआ ?

किसने बताया तब उत्कर्ष बोला मम्मी स्कूल में नाटक में अर्जुन का रोल कर रहा मेरे दोस्त रितेश ने कहा कि मैं एक्लव्य का रोल इसलिये बहुत अच्छा कर रहा हूँ कि क्योकि मेरा खून आदिवासी का है और समाज भी अब मम्मी ये बताओ कि समाज क्या होता है ?आदिवासी क्या होता है ?

डॉ सुमन लता के समझ मे ही नही आ रहा था कि उत्कर्ष को क्या बताये फिर भी उन्होंने बेटे की जिज्ञासा को शांत करने के लिये उंसे बताया कि आदिवासी उंसे कहते है जो ऋषि मुनियों के साथ वन प्रदेशो में रहता था उत्कर्ष ने फिर सवाल कर दिया मम्मी हम तो दिल्ली में रहते है फारेस्ट तो यहां से बहुत दूर है
तब हम आदिवासी कैसे हुये?

डॉ तांन्या ने बताया कि दिल्ली में पहले जंगल और पहाड़ था और खांडव वन प्रदेश था उसी काल मे एकलव्य भी था जिसका रोल तुम निभा रहे हो जितने भी लोग उस समय यहां रहते थे सब आदिवासी कहलाते है।

फिर भी उत्कर्ष की जिज्ञासा शांत नही हुई वह यही प्रश्न दादा विराज दादी तांन्या एव पापा तरुण से पूछता रहा तरह तरह के जबाब से वह संतुष्ट नही हुआ ।

अंत मे दादा विराज ने उत्कर्ष के प्रश्न से अजीज आकर उत्कर्ष से कहा आदिवासी का मतलब है वह बच्चा जो कुछ भी कर सकने में सक्षम सबल हो एव उसके लिए कुछ भी असम्भव नही हो दादा के उत्तर से उत्कर्ष को लगा कि यही सही है।

आदि वासी उंसे ही कहते है जिसके लिए कुछ भी असंभव नही हो और वह कुछ भी कर सकने में सक्षम हो दादा की यह बात उसके मन में बैठ गयी ।

वह भी दिन आ गया जिस दिन एक्लव्य नाटक का मंचन होना था सेंट स्टीफेन कॉन्वेंट में पूरा स्कूल गार्जियन अतिथियों से भरा था मुख्य अतिथि थी प्रिशा जो केंद्रीय शिक्षा एव संस्कृति मंत्रालय में पदस्त थी ।

नाटक शुरू हुआ और समाप्त हुआ प्रिशा ने अपने संबोधन में आदिवासी समाज के राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित होकर राष्ट्रीय विकास की चेतना जागृति का हिस्सा बनने के लिए मुक्त कंठ से प्रसंशा किया और उत्कर्ष जैसे आदिवासी शौर्य जिसने एकलव्य की भूमिका को जीवंत कर जागरूक होते भारतीय संस्कृति के जीवंत पराक्रम के प्रतीक आदिवासी समाज के भावी भविष्य के सूर्य के रूप में भावनात्मक अभिव्यक्ति दी ।

दस वर्ष के उत्कर्ष से जब मंच पर बोलने के लिए कहा गया तो उसने बड़ी ही विनम्रता से कहा कि आदिवासी समाज उंसे कहते है जिसके लिए कुछ भी असम्भव नही होता है वह कुछ भी कर सकने में सक्षम सबल होता है पूरा हाल मासूम उत्कर्ष के आत्मविश्वास से करतल ध्वनि से गूंज उठा ।

कार्यक्रम समाप्त ही होने वाला था तभी सेंट फ्रांसिस स्कूल के बच्चों में उनके कालेज का क्रिकेट का बेस्ट प्लयेर तुषार ने उत्कर्ष के निकट आकर कहा कि उत्कर्ष तुमने एक्लव्य का बहुत अच्छा रोल किया है और तुम हो भी आदिवासी समाज से तुममें कुछ भी कर सकने की क्षमता है तो हम तुम्हे अपने कॉलेज क्रिकेट मैच के लिए आमंत्रित करते है।

उत्कर्ष बोला कि मैंने अब तक क्रिकेट तो खेला ही नही है तुषार ने कहा अभी डायलग से तो बहुत बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे आदिवासी समाज कुंछ भी कर सकने में सक्षम सबल होता है या तो तुम यह मान लो कि तुम कलाकार अच्छे हो या हमारे स्कूल से क्रिकेट मैच के इनविटेशन को एक्सेप्ट करो ।

तुषार और उत्कर्ष की वार्ता चल ही रही थी कि सेंट स्टीफेन कॉलेज एव सेंट फ्रांसिस कॉलेज के प्रिंसिपल कौतूहल बस वहां पहुंचे और बच्चों के बाल मन कि श्रेष्ठता के द्वंद को ध्यान से सुनने लगे उत्कर्ष ने कहा कि तुषार बात तो तुम चैलेंज की कर रहे हो और समाज विशेष का वास्ता भी दे रहे हो ।

चलो ठीक है अब तक
मैंने क्रिकेट का बल्ला तक नही पकड़ा है तुम सिर्फ तीन महीने के बाद फ्रांसिस कॉलेज से मैच रखो बच्चों के बीच कॉलेजों की चुनौती की बात सुनकर स्टीफेन एव फ्रांसिस का माथा ठनका की बच्चों ने मैच फाइनल कर लिया स्कूल प्रशासन के बिना सहमति के तो यह मैच दो स्कूलों के बीच सम्पन्न कैसे होगा ।

अतः स्टीफेन के प्रिंसिपल फादर डेनियल एव सैन्य फ्रांसिस के फादर जॉन ने एक साथ कहा ठीक है तीन महीने बाद फ्रांसिस स्कूल एव स्टीफेन स्कूल के अंडर टेन के बच्चों के बीच क्रिकेट मैच होगा जिसके कैप्टन तुषार होंगे।

उत्कर्ष की मम्मी डॉ सुमन लता को लगा कि उनके बेटे उत्कर्ष ने अत्यधिक अति उत्साह आत्मविश्वास में कुछ ऐसा बोल दिया जो सर्वथा असम्भव है ।

डॉ सुमन लता उत्कर्ष के साथ लौट कर घर आई और दादा विराज एव दादी तांन्या से बोली आज उत्कर्ष ने बहुत प्रभवी और स्वाभाविक एकलव्य का रोल करके आप सबका नाम रौशन कर दिया ।

पूरे दिल्ली में अपने आप मे आपका पोता अकेला रोशन चिराग है जिसका कोई जबाब नही लेकिन इसने अतिआत्म विश्वास में फ्रांसिस स्कूल से अंडर टेन बच्चों का क्रिकेट मैच खेलने का न्योता स्वीकार कर आये है।

जनाब ने कभी बैट तो पकड़ा नही और तीन महीने बाद मैच होना है दादा विराज ने कहा उत्कर्ष बेटे जिस विषय की जानकारी नही हो यदि कोई चुनौती देता भी है तो उसे अनसुना कर देंना चाहिये।

फिर उन्होंने बहु सुमन लता से पूछा कि यह चुनौती सिर्फ तुषार एव उत्कर्ष के ही बीच है या स्कूल प्रशासन भी सम्मिलित है डॉ लता ने बताया कि पापा जब तुषार इसे चैलेंज कर रहा था तभी दोनों स्कूलों के प्रिंसिपल फादर जॉन एव फादर डेनियल मौजूद थे दोनों वहां पहुँच गए और इन दोनों के बीच की चुनौतियों को दोनों स्कूलों की प्रतिष्ठा से जोड़ कर दोनों स्कूलों के बीच अंडर टेन क्रिकेट मैच प्रस्तवित कर दिया।

इतना सुनते ही विराज ने उत्कर्ष से कहा बेटे उत्कर्ष तुमने ठीक नही किया उत्कर्ष बोला बाबा आप ही ने तो कहा था कि आदिवासी के लिये कुछ भी असम्भव नही होता है वह कुछ भी कर सकने में सक्षम सफल होता है आप निश्चिन्त रहिये और दादी मम्मी पापा को आदिवासी शक्ति के कमिटमेंट के कंप्लायंस की प्रतीक्षा करे और आप हमारे साथ जब मै क्रिकेट की प्रैक्टिस करु तब आप अवश्य चले और क्रिकेट खेल का मैन्युअल फील्ड प्लेसिंग आदि को समझने के लिये किसी जानकार को तीन महीने के लिए राजी करें ।

विराज को अपने दस वर्षीय पोते के विश्वास पर आश्चर्य हो रहा था लेकिन बाल हठ के समक्ष विवश वे कर ही क्या सकते थे।

विराज ने बड़ी मुश्किल से अपने एक पुराने मित्र सेंना के सेवा निबृत्त अधिकारी मेजर जनरल इम्तियाज़ शेख से सम्पर्क किया उनका बेटा बच्चों को क्रिकेट मैच बच्चों को सिखाता था।

विराज ने इम्तिहान से अपने पोते के सम्बंध में बात किया और उसकी जिद की चुनौती के विषय मे बताया औऱ उत्कर्ष को क्रिकेट के बुनियादी प्रषिक्षण देने की बात कही ।

मेजर जनरल इम्तियाज ने विराज से कहा विराज साहब आप वेवजह परेशान है उत्कर्ष ने एकलव्य जैसे संकल्पित किरदार को दस वर्ष की आयु में निभाया है जिसकी चर्चा दिल्ली में आम है एकलव्य दृढ़ प्रतिज्ञ और मजबूत इरादों का बच्चा ही था ।

जब गुरु द्रोण के पास धनुर्विद्या सीखने की मंशा से गया था और गुरु द्रोण के इनकार करने के बाद उसने उन्हें अपने गुरु के रूप में मिट्टी की मूर्ति में उनके रूप एव आत्मा में प्रतिस्थापित किया और उनके सभी गुणों को प्राप्त किया और जिस अर्जुन को गुरु द्रोण साक्षात शिक्षित कर रहे थे उस अर्जुन से बड़ा धनुर्धर बन गया आपके पोते ने एकलव्य का जीवन रोल करके स्वंय में एकलव्य को जीवंत किया है ।

आप विल्कुल निश्चित रहिये उत्कर्ष निश्चित तौर पर सफल होगा आप उत्कर्ष से जा कर सिर्फ इतना बता दीजिये की वह अपने स्कूल के लिये अपने इग्यारह साथियों का चुनाव स्वय करे टीम बना ले।

विराज ने उत्कर्ष को अपने और मेजर जनरल इम्तियाज के साथ हुई वार्ता का हवाला देते हुये कहा कि तुम कल अपनी टीम अपने क्लास टीचर एवं प्रिंसिपल की अनुमति से टीम का चुनाव करो।

उत्कर्ष दूसरे दिन स्कूल गया और प्रिंसिपल फादर डेनियल से एव क्लास टीचर मारिया से अनुमति लेकर अपने टीम का चुनाव किया और स्कूल ग्राउंड में मेजर जनरल इम्तियाज के बेटे मंजूर से प्रशिक्षण की अनुमति लेकर बाबा विराज को बता दिया विराज ने मंजूर को उत्कर्ष के स्कूल ऑफ टाइम के बाद उत्कर्ष कि टीम को प्रशिक्षण देने के कार्य शुरू करे ।

मंजूर ने दूसरे दिन से ही उत्कर्ष की टीम को प्रशिक्षण देने का कार्य प्रारंभ कर दिया।

सेंट स्टीफेन कालेज के प्रिंसिपल एव उत्कर्ष की क्लास टीचर जब भी मंजूर उत्कर्ष की टीम को क्रिकेट का प्रशिक्षण देते उपस्थित रहते और बच्चो की मेहनत को सराहते ।

धीरे धीरे समय बीतता गया और एक माह मैच होने में समय शेष रह गया तब उत्कर्ष को बुखार आ गया और वह बीमार पड़ गया डॉक्टरों ने चेक किया और बताया कि उत्कर्ष को टायफाइड है और ठीक होने में पन्द्रह दिन या अधिक भी लग सकते है ।

मंजूर को जब पता लगा तब वे उत्कर्ष से मिलने आये और उन्होंने उत्कर्ष से कहा बेटे तुम निश्चिन्त रहो तुम्हारी टीम को हम इतना मजबूत बना देंगे कि तुम्हारी टीम विजेता होगी ।

तुम पहले स्वस्थ हो जाओ और पुनः प्रशिक्षण का हिस्सा बनना उत्कर्ष को ठीक होने में बीस दिन लग गए उसके पास मात्र दस दिन प्रशिक्षण के लिए बचे वह स्वस्थ होकर पुनः प्रशिक्षण में सम्मिलित हुआ ।

तीन महीने पूर्ण हो चुके थे और अब फ्रांसिस स्कूल की चुनौती के क्रिकेट मैच का दिन आ ही गया।

सेंट स्टीफेन स्कूल की टीम उत्कर्ष के नेतृत्व में एव सेंट फ्रांसिस की टीम तुषार के नेतृत्व में मैच के लिये आमने सामने खड़ी थी खिलाड़ियों का परिचय दोनों स्कूलों के प्रिंसिपल फादर डेनियल एव फादर जॉन ने लिया और टॉस उछाला गया उत्कर्ष के क्लास टीचर मारिया एव तुषार के क्लास टीचर जेनिथ के समक्ष और तुषार ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने के निर्णय के साथ बल्लेबाजी करने उसकी टीम उतरी और उत्कर्ष की टीम ने फील्डिंग शुरू किया ।

मैच के दर्शक के रूप में मेजर जनरल इम्तियाज एव विराज तांन्या डॉ तरुण डॉ सुमन लता कोच मंजूर दोनों स्कूलों के प्रिंसिपल एव टीचर एव स्टूडेंट एकत्रित थे मैच में तुषार की टीम ऐसे खेल रही थी जो जैसे कोई बहुत अनुभवी परिपक्व एव व्यवसायिक क्रिकेट टीम हो और उत्कर्ष की टीम फील्डिंग करते करते बॉलिंग करते करते ऐसे नज़र आ रही थी जैसे शेर किसी कमजोर शिकार को दौड़ा रहा हो।

मैच में तुषार की टीम ने बनाये पूरे पांच सौ रन और उत्कर्ष की टीम को ऐसे दौड़ाया की पूरी टीम के हौसले पस्त हो चुके थे ।

उत्कर्ष की टीम ने बल्लेबाजी शुरू किया और पचास रन पर सात खिलाड़ी ढेर हो चुके थे अब उत्कर्ष स्वय बैटिंग करने के लिए मैदान में उतरा उसने अपने दूसरे साथी रमेन्द्र से कहा सिर्फ अपना एंड बचाये रखना ।

इधर सेंट स्टीफेन कॉलेज अपने अंडर टेन टीम की हार निश्चित मान चुका था डॉ सुमन लता बार बार पति तरुण एव ससुर विराज और सास तांन्या से कह रही थी मैन इस लड़के से कहा था बेटे जिद मत कर जिस चीज के विषय मे जानकारी न हो तो उसके विषय मे जिद्द नही करनी चाहिए लेकिन इस लड़के ने बात नही मानी और नतीजा सामने है इसकी बनी बनाये प्रतिष्ठा तो जाएगी ही और स्कूल की भी बदनामी होगी।

मेजर जनरल इम्तियाज ने कहा कि विराज हम लोग जब जंग के मैदान में होते है तो हार और जीत के बीच का फासला सिर्फ एक सांस का होता है और मौत चारो तरफ घूम रही होती है एक सांस को बचाये रखना जीत के लिए बहुत कठिन होता है और जिस सेना के सिपाही इस संकल्प एव दृढता से जंग में लडते है फतेह उनके कदम चूमती है परिवर्तन के लिये लम्हा बहुत होता है।

अतः कोई चिंता ना करो जंग और खेल में फर्क सिर्फ इतना है कि जंग में अंतिम विकल्प है और खेल में विकल्प खुले रहते है अतः चिंता ना करे खेल के अंतिम गेंद तक धैर्य से देंखे जंग के मैदान में किसी का बेटा नही लड़ता है लड़ता है तो देश का सिपाही और देश की मिट्टी का लाल ठीक उसी प्रकार खेल में किसी का बेटा नही खेलता खेलता है खिलाड़ी और टीम ।

इधर तुषार की टीम की बॉलिंग के समक्ष उत्कर्ष किसी तरह झेल पा रहा था रमेन्द्र तो किसी तरह इधर उधर बल्ला घुमा कर छोर बदल रहा था पूरे दस ओवर मेडेन के बाद उत्कर्ष ने पहले चार रन बनाए ।

उसके बाद जो बैटिंग का नजारा देखने को मिला वह बहुत ही आश्चर्य जनक था उत्कर्ष के तूफानी बल्लेबाजी को रोक पाना सम्भव नही था उसने पहला सतक पच्चीस ओवर दूसरा सतक साठ ओवर तीसरा सतक पूरे सौ ओवर में बनाये खेल के तीसरे दिन उत्कर्ष ने चौथा सतक बना डाला और चार सौ पैतीस रन अकेले ही बना डाले उधर रामेंद्र एंड पर एंड बदलता रहा और दो दिन में मात्र पच्चीस रन बनाए उत्कर्ष और रमेन्द्र की जोड़ी ने मिलकर चार सौ साठ रन बना डाले और मैच जीत लिया ।

मेजर जनरल इम्तियाज और कोच मंजूर उछल पड़े उस दौर में एक दिवसीय क्रिकेट की परम्परा नही थी और केवल टेस्ट मैच ही होते थे विराज और तरुण एव तांन्या डॉ सुमन लता आश्चर्य चकित रह गए ।

पुरस्कार वितरण समारोह में प्रिंसिपल डेनियल ने कहा कि उत्कर्ष मानव मूल्यों के उत्कृष्ट का उत्कर्ष है उसमें इतनी क्षमता है कि जो सोच लेगा वह कर सकने में सक्षम है।

कोच मंजूर ने कहा कि उत्कर्ष होनहार फौजी का पोता है और बहुत होशियार इरादों का बुलंद है यह जब भी कुछ भी सोचेगा सतह पर उतार सकने में सक्षम है।

स्टेज पर पहले तुषार को बोलने का मौका मिला उसने कहा मेरा दोस्त उत्कर्ष है इस पर हमें जीवन भर अभिमान रहेगा ।

उत्कर्ष को मौका दिया गया उसने अपने दादा जी की शिक्षा को ही दोहराया उसने दादा जी कि तरफ इशारा करते हुए बताया कि मेरे दादा जी ने उस वक्त बताया था जब मैं नही जानता था कि मैं आदिवासी समाज से हूँ जब मुझसे मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि तुम आदिवासी समाज से हो तब मैंने अपने बाबा विराज जी से पूछा था कि आदिवासी क्या होता है तब उन्होंने एकलव्य का उदाहरण दिया था और बताया था कि आदिवासी कुछ भी कर सकने में सक्षम सबल एव संकल्पित होते है ।

जब मैं बैटिंग कर रहा था तब सिर्फ इतना ही याद था।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
1 Like · 130 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
श्री राम भक्ति सरिता (दोहावली)
Vishnu Prasad 'panchotiya'
Gazal
Gazal
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
प्रयास
प्रयास
Dr fauzia Naseem shad
" नैना हुए रतनार "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
"What comes easy won't last,
पूर्वार्थ
बंदूक की गोली से,
बंदूक की गोली से,
नेताम आर सी
संविधान  की बात करो सब केवल इतनी मर्जी  है।
संविधान की बात करो सब केवल इतनी मर्जी है।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
BLACK DAY (PULWAMA ATTACK)
BLACK DAY (PULWAMA ATTACK)
Jyoti Khari
#जय_राष्ट्र
#जय_राष्ट्र
*Author प्रणय प्रभात*
हां मैं इक तरफ खड़ा हूं, दिल में कोई कश्मकश नहीं है।
हां मैं इक तरफ खड़ा हूं, दिल में कोई कश्मकश नहीं है।
Sanjay ' शून्य'
अब समन्दर को सुखाना चाहते हैं लोग
अब समन्दर को सुखाना चाहते हैं लोग
Shivkumar Bilagrami
ख़याल
ख़याल
नन्दलाल सुथार "राही"
कहां गए तुम
कहां गए तुम
Satish Srijan
हुई नैन की नैन से,
हुई नैन की नैन से,
sushil sarna
राखी का कर्ज
राखी का कर्ज
Mukesh Kumar Sonkar
ग़ज़ल- हूॅं अगर मैं रूह तो पैकर तुम्हीं हो...
ग़ज़ल- हूॅं अगर मैं रूह तो पैकर तुम्हीं हो...
अरविन्द राजपूत 'कल्प'
राम नाम अतिसुंदर पथ है।
राम नाम अतिसुंदर पथ है।
Vijay kumar Pandey
कलम वो तलवार है ,
कलम वो तलवार है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
सेंधी दोहे
सेंधी दोहे
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
☘☘🌸एक शेर 🌸☘☘
☘☘🌸एक शेर 🌸☘☘
Ravi Prakash
आज का श्रवण कुमार
आज का श्रवण कुमार
Dr. Pradeep Kumar Sharma
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-143के दोहे
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-143के दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मोहब्बत
मोहब्बत
Dinesh Kumar Gangwar
राम सिया की होली देख, अवध में हनुमंत लगे हर्षांने।
राम सिया की होली देख, अवध में हनुमंत लगे हर्षांने।
राकेश चौरसिया
प्रणय 2
प्रणय 2
Ankita Patel
फूल
फूल
Pt. Brajesh Kumar Nayak
कुछ लिखा हू तुम्हारी यादो में
कुछ लिखा हू तुम्हारी यादो में
देवराज यादव
जब आपका ध्यान अपने लक्ष्य से हट जाता है,तब नहीं चाहते हुए भी
जब आपका ध्यान अपने लक्ष्य से हट जाता है,तब नहीं चाहते हुए भी
Paras Nath Jha
मैं कहना भी चाहूं उनसे तो कह नहीं सकता
मैं कहना भी चाहूं उनसे तो कह नहीं सकता
Mr.Aksharjeet
2662.*पूर्णिका*
2662.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...