#ऊंचे टीले प्रधानसेवक
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★ #ऊँचे टीले प्रधानसेवक ★
ज्यों उलझे बिखरे केश तेरे
आज कुछ ऐसा मेरा देश शुभे
चुप रहूं तो अपराधी
सच बोलूं तो क्लेश शुभे
उजली रातें स्वर्णिम दिन
मीत सब झूठे तेरे बिन
विश्वास जीतना शेष है जिनका
उनके बहुरे अच्छे दिन
हरितवर्ण हठीली नागिन
दंश भोगते समस्त प्रदेश शुभे
चुप रहूं तो अपराधी
सच बोलूं तो क्लेश शुभे
सावन फागुन अनमोल प्रिये
प्राण प्राण बिन कैसे जिये
वचनपुलाव मनमोहने
स्वप्न सुहाने बहुत पिये
ढोल नगाड़ा डंका जैसा
अब पिटना कार्यविशेष शुभे
चुप रहूं तो अपराधी
सच बोलूं तो क्लेश शुभे
अपने को कही बातों का क्या
प्रेमरस भीगी रातों का क्या
ऊँचे टीले प्रधानसेवक
उपालम्भ बरसातों का क्या
आतुर व्याकुल बड़वानल
मांगता गृहप्रवेश शुभे
चुप रहूं तो अपराधी
सच बोलूं तो क्लेश शुभे
सौदामिनी हे दामिनी
बीत चली मधुयामिनी
स्वामिनी हुई बैरन सत्ता
कांचनकामिनी अरु भामिनी
जनमन की भटकन कहने को
किया है श्रीगणेश शुभे
चुप रहूं तो अपराधी
सच बोलूं तो क्लेश शुभे ।
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२