*ऊँट के मुँह में जीरा 【 कहानी 】*
ऊँट के मुँह में जीरा 【 कहानी 】
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
सेठ जी लोकसभा के चुनाव में खड़े हुए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी । सेठ जी समाज के प्रति अपने योगदान को पत्रकारों को गिनवा रहे थे ।
“मैं हर साल एक सौ विद्यार्थियों को एक – एक लाख रुपए छात्रवृत्ति के रूप में देता हूँ ताकि वह पढ़ – लिख कर उच्च शिक्षा संस्थानों से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें और देश के प्रतिष्ठित नागरिक बन पाएँ। इसके अलावा मैं एक सौ व्यक्तियों को हर साल उनके इलाज के लिए एक लाख रुपए से लेकर पाँच लाख रुपए तक सहायता के रूप में देता हूँ, जिससे कि उन्हें अपना अच्छा इलाज कराने में कोई दिक्कत न आए। लोकसभा में पहुंचने के बाद भी मेरी यह समाज सेवा जारी रहेगी । मेरी भावनाओं को सम्मान देने के लिए कृपया मुझे जनता का वोट चाहिए । कोई सवाल पूछना हो तो पत्रकार बंधु पूछ सकते हैं ।”
अंत में सेठ जी ने पत्रकारों का आवाहन किया । गिरीश एक युवा पत्रकार था । प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे पीछे बैठा था। जब अग्रिम पंक्तियों में बैठे शीर्ष पत्रकारों ने चुप्पी साध ली ,तब गिरीश ने प्रश्न किया ” सेठ जी !आपका कार्य अच्छा है । मैं सराहना करता हूँ। लेकिन इससे 130 करोड़ भारतीयों को अच्छा इलाज और अच्छी शिक्षा उपलब्ध नहीं हो सकती। यह ऊँट के मुँह में जीरा है। आप कानून बनाने की बात करिए कि इस देश में सबको एक समान शिक्षा निःशुल्क उपलब्ध होगी तथा इस देश में सबको मुफ्त इलाज की सर्वोत्तम सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी । अगर कोई प्राइवेट में पढ़ेगा तो पैसा सरकार देगी । अगर कोई प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराएगा तो खर्च सरकार के द्वारा वहन किया जाएगा। अगर आप तैयार हैं तो कहिए ? ”
सेठ जी सोच में पड़ गए । कहने लगे “इसके लिए तो पार्टी का घोषणा पत्र तैयार करने वाली समिति ही अधिकृत है । वह जैसा निर्णय लेगी ,मुझे मान्य है ।”
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451