उड़ान
मन उमंगो के आसमान में उड़ने लगा
राहे स्वयं राह दिखाने लगी
राते स्वयं रोशन होने लगी
जब से मिली हो तुम
जिंदगी स्वयं मुस्कराने लगी
मन कहता है
पहाड़ो की वादियों में ढलती शाम हो
शाम के झुरमुट में पेड़ो के लम्बे साये हो
नदी के कलकल संगीत में
बहती समीर हो,बहती समीर में
तुम्हारा लहराता आँचल हो
आकांषये यो बढ़ने लगी
जिंदगी स्वयं मुस्करानी लगी
डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल