उस रात …..
उस रात …….
उस रात
वो बल्ब की पीली रोशनी
देर तक काँपती रही
जब तुम मेरी आँखों के दामन में
मेरे ख्वाबों को रेज़ा-रेज़ा करके
चले गए
और मैं बतियाती रही
तन्हा पीली रोशनी से
देर तक
उस रात
मुझसे मिलने फिर मेरी तन्हाई आई थी
मेरी आरज़ू की हर सलवट पर
तेरी बेवफाई मुस्कुराई थी
और मैं
अन्धेरी परतों में
बीते लम्हों को बीनती रही
देर तक
उस रात
तुम उल्फ़त के दीवान का
पहला अहसास बन कर आए
मेरी हर नफस में समाये
दूरियाँ सिमटती गईं
हया
बेहया हुई
जाने कब टूट गया
वो तिलस्म बांहों का
और मैं
मिटाती रही बदन से
तुम्हारी बेहयायी के निशान
देर तक
सुशील सरना