उस भटकते दीवाने को
प्रकट हुआ
छिप गया
अस्त हुआ
यह सूरज मेरे लिए
अगली सुबह जो
उगा किसी के घर की
छत की दीवार के पीछे से तो
दोपहर तक डटा रहा
उसके कमरे की खिड़की पर
सांझ होने पर
उस घर को हमेशा के लिए अपनाता हुआ
उतर गया ऊपर से नीचे तक
उतरती सीढ़ियों से
आंगन में
वह सूरज ऐसा डूबा
उस शाम कि
समा गया घर आंगन की
मिट्टी में
उसकी खुशबू रम गयी
घर के दरो दीवार में
उस भटकते दीवाने को
पनाह मिली
ठहराव मिला
दिली लगाव मिला
ऐसी बेपनाह मोहब्बत मिली कि
वह फिर दोबारा कभी न
उगा
किसी और के घर की छत
रोशन करने को।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001