उसने मुझको बुलाया तो जाना पड़ा।
गज़ल
212……212……212……212
उसने मुझको बुलाया तो जाना पड़ा।
रंग होली में उसको, लगाना पड़ा।
उनके खातिर ही हॅंसना हॅंसाना पड़ा।
गम का भी बोझ हॅंसकर उठाना पड़ा।
जिंदगी कुछ तो रंगीन हो आपकी।
इसलिए रंग भी ये लगाना पड़ा।
प्यार जब से हुआ है मुझे आपसे।
मेरे पीछे तभी से जमाना पड़ा।
साकी मय और मीना से नफ़रत मुझे,
पी के आए वो फिर भी बिठाना पड़ा।
एक मां खूब रोई बहुत दर्द में,
आज बच्चों को भूखा सुलाना पड़ा।
काटकर पेट जोड़ा जिसे उम्र भर,
आज ‘प्रेमी’ वो सारा खजाना पड़ा।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी