उसकी आंखों से छलकता प्यार
उसकी आंखों से छलकता प्यार
करती प्यार वो बेशुमार
सुबह, दिन, शाम हो या रात
करती निर्वहन अपने कर्तव्यों का अविराम
किसी की प्रेयसी हो लुटाती प्रेम अपार
कहीं हो जाती वात्सल्य की मूर्ति का विस्तार
कहीं रिश्तों में उलझती, कहीं सीमाओं में बंधती
निर्बाध करती जाती, संस्कृति और संस्कारों का प्रचार
जिसकी जुबां पर होता माँ सरस्वती का निवास
संस्कारों से बालपन को पोषित करती निर्बाध
स्वयं को सीमाओं में बांधती, खुद से करती मुहब्बत बेशुमार
घुटती साँसों के साथ चहरे पर लिए मुस्कान, बढ़ती अविराम
नारी तुम केवल नारी नहीं हो
तुम हो इस धरा पर अनुपम उपहार
तुमसे रोशन ये जहाँ, तुमसे रोशन ये कायनात
तुमसे ही. मुस्कराता बचपन, तुमसे ही रोशन ये जहाँ