उसका मेरा साथ सुहाना….
उसका मेरा साथ सुहाना…
उसका मेरा साथ सुहाना बरसों से है ।
दिल से दिल का मेल सुहाना बरसों से है ।
नदिया-सागर जिस छोर मिले औ एक हुए,
नयन – कोर पर बना मुहाना बरसों से है ।
कितना गा लूँ फिर भी नव्यता कम न होती,
अधरों पर इक नेह-तराना बरसों से है ।
दिल में छवि उकेर घंटों उससे बतियाना,
यूँ खुश रह दिन-रैन बिताना बरसों से है ।
रहे सदा नयनों में फिर भी शर्मोहया न छूटे,
मिलते ही नज़र हर बार लजाना बरसों से है ।
मिट जाते हम कबके जुल्मोगम से डर के,
जीना है उसकी खातिर बहाना बरसों से है ।
पलभर गर गुम जाए जान हलक में आए,
दिल में उसका बना ठिकाना बरसों से है ।
एक झलक पा उसकी मरकर भी जी उठते,
प्राणों का उससे रिश्ता पुराना बरसों से है ।
पथ यह नहीं आसान करना खुदी कुरबान,
कहता आया यही जमाना बरसों से है ।
राह अगोरते उसकी सुध अपनी बिसरायी,
होंठों पर सबके अफसाना बरसों से है ।
खोज में ‘सीमा’ उसकी होश गँवाए अपने,
भटके दर-दर एक दीवाना बरसों से है ।
-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“विहंगिनी” से