उसका खत
उसके खत की कुछ बात ही
निराली थी ।
ज्यो मेरे पास आती थी ।
सीने से लगा लेता था ।
कुछ पल उसे एकटक
देखा ही करता था ।
एक एक शब्द दिल को
छू जाता था ।
उस खत में सिर्फ
मेरा ही जिक्र रहता था ।
अंत मे वो
एक छोटा सा दिल भी
उस पर बना दिया करती थी ।
उसमे पहले मेरे नाम का पहला अक्षर
और उसके नाम का पहला अक्षर ।
को दिल के अंदर कैद कर
देती थी ।
जैसी भी थी ।
आज भी मेरे किताबो के बीच
उसका वो खत सम्हाले
रखा हु ।
जब भी उसकी याद आती
बस एक नजर में उसका वो मासूम सा
चेहरा उस खत पर
नजर आने लगता है ।
गोविन्द उईके